Tuesday, September 22, 2015

हिन्दी

हम तो यूं ही घबरा गए थे, कवि सम्मेलन के नाम पर
हमें क्या पता था, यूं ही लोग हँसेंगे हम पर।

हिन्दी पखवाड़े का, एक ऐसा मौका आया
और हमने कवियोंका दरवाजा खटखटाया।

एक-दो करके हम, जमा कर रहे थे कवियोंकों
यहाँ तो पूरा कवियोंका मेला हो आया।

सोचा की एक रोज, मैं भी कवि बन जाऊँ
इनसे दो-चार लप्ज सीखके, टी वी में झलक दिखलाऊं।

पर ये होने से पहले, मुझे एक सपना आया
आप कहें तो मैं, पहले वो सपना बताऊँ।

हुआ यूँ कि मेरे सपने में आयी हिन्दी भाषा
वही हिन्दी जो है देश की राष्ट्रभाषा और हमारी आशा।

वो बोली मुझसे, की घबराना नहीं मेरे दोस्त
मै इसलिए आयी हूँ, कि खत्म कर दूँगी भाषा की निराशा।

पढ़ना, लिखना सब हिन्दी में हो जाएगा
और देखना एक दिन, अंग्रेज़ी का नामोनिशान मिट जाएगा।

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