Tuesday, September 26, 2023

सबका हिसाब होगा...

 बचपनमें खेल कुदने का 

छोटी छोटी चीजों से खुशियाँ बाटने का 

सर पे जुनून लेकर चलने का ,  

सबका हिसाब होगा.... 


जवानी मे बिनधास्त रहने का 

दुनिया से लडने का, पंगे मे पडने का 

जजबा...कुछ कर दिखाने का 

अपने प्यार को पाने का 

सबका हिसाब होगा ... 


कुछ कमाने का, कुछ गवाँने का 

कुछ देने का, कुछ लेने का 

कुछ बताने का, कुछ सुनने का

कुछ समझने का, कुछ समझाने का

कुछ ना करने का, कुछ करने का 

सबका हिसाब होगा


कुछ खोने का, कुछ पाने का 

कुछ साथ ले जाने का, कुछ छोड देने का

कुछ अच्छाई का, कुछ बुराई का 

कुछ अपनों का, कुछ सपनो का 

सबका हिसाब होगा 


कुछ छुटने का, कुछ लूटने का 

कुछ धर्म का, और अपने कर्म का 

सबका हिसाब होगा...

Thursday, March 30, 2023

कृष्णा ..... एक मित्र

 क्षणाक्षणाला आठवण येते कृष्णा

असा कसा सोडून गेलास रे.....


दुखणं खूपणं होतं काही, 

कुणालाच का बोलला नाहीस रे.....

असा कसा सोडून गेलास रे...... 


ओस पडला तुझा मित्रपरिवार 

तुझ्या विना करमत नाही रे.....

असा कसा सोडून गेलास रे...... 


विश्वास कसा ठेवू? तू आमच्यात नाहीस यावर

प्रत्येकाच्या मनात तू घर केलेस रे.....

असा कसा सोडून गेलास रे...... 


आठवणींच्या विश्वात टाकून आम्हाला

स्वतः मात्र फरार झालास रे..... 

असा कसा सोडून गेलास रे...... 


खुप आठवण येते तुझी 

आतातरी परत ये रे ...... 

कृष्णा लवकर परत ये रे.......


- सुनिल जगदाळे (२२ मार्च १०ः३०) 

Monday, February 27, 2023

दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है

 

मन में विचार,  चेहरे पे मुस्कान 
खुला दिल, खुला आसमान 
हर लम्हा आपका, खुशी सें है 
दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है ।

वो बात कुछ और थी, ये बात कुछ और है 
वो जमाना कुछ और था, ये जमाना कुछ और है 
दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है ।

अपनों के साथ, दुसरों का भी हाल पूछते है 
जिनसे पहचान नहीं, उन्हें भी सवालात पूछते है 
बात बनें ना बनें, मुलाकात जरूर करते है
दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है ।

सोच में रहते है वो सदा, सवाल के जवाब पर 
मुख पढ लेते है कभी-कभी, सोचने के आधार पर
हम चाहतें है वो जवाब लेकिन जवाब मिलता कुछ और है 
दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है ।

60 साल के हो गये, लेकिन सोलह जैसे रहते है
मिल-जुलकर रहना, यही उनकी आदत है 
इसलिये तो शायद उनका, इतना बडा परिवार है 
दिनेश सर की तो, बात ही कुछ और है .. ।।

Wednesday, May 12, 2021

यातना आणि याचना

आज-काल मिडीयावर विरंगुळा कमी 

आणि श्रद्धांजली जास्त वाचावी लागते,

अशी बातमी वाचताना मग, 

आपलेही काळीज थरथरते. 


कुणी गावाकडचे, तर कुणी शहराकडचे

कधी इकडचे, तर कधी तिकडचे

कोण नात्यातले, तर कोण ऑफिसातले, 

वेळ खराब असेल, तर आपल्याच घरातले. 


काळजात धस्स होते, हे सगळे ऐकून

कुठे गेला देवा आम्हां, एकट्याला टाकून

एकदा असेच अचानक, माझेही डोळे पाणावले, 

कोरोनाच्या या महामारीत, जेव्हा माझेच मी गमावले. 


नकोय ते दु:ख, नकोय त्या यातना, 

थांबव सर्व महामारी, हीच देवा प्रार्थना, 

पुरे झाले मृत्यू तांडव, आता तरी धाव रे 

कर काहीतरी चमत्कार, आणि वाचव शहरें, गाव रे. 

 

- सुनिल जगदाळे

Wednesday, April 21, 2021

कोरोना से डरो और खुद से प्यार करो

क्यूं इंतजार करें, कोई अपना गुजर जाए ? 
क्या हमसें होगा नहीं, वक्त से पहले सँवर जाएं ? 

क्या कोरोना उच-नीच देखता है ? 
या अमीर-गरीब देखता है ? 
बडा-छोटा देखता है, 
या ताकतवर देखता है? 

कोरोना ये सब नही देखता
ना ही कोई बडा-छोटा देखता है 
कभी भी, किसी को भी हो सकता है... 

तो आप अपने आपको क्यूं फँसा रहे हो... 
मालूम होते हुए भी, क्यूं मौत के पास जा रहे हो.. 

तुम्हें क्यूं लगता है  की, मुझे कुछ नही होनेवाला 
ये कोरोना- बिरोना मुझे नहीं छुंनेवाला
और ना ही मैं उससे डरनेवाला
ऐसा करके आपको भी, क्या है मिलने वाला ? 

वो भले ही एक छोटासा विषाणू है
जाने अंजाने में शरीरमें घुस जाता है
फिर अपने साथ- साथ सभीको खतरा होता है
और देखते ही देखते अापकी जान लेता है. 

फिर किस को बताओगे, मैं मास्क नही पहनता ? 
फिर किसको दिखाओगे, मैं घरमें नही बैठता ? 
कूछ पल जीना चाहते हो, तो नियमोंका पालन करो, 
कोरोना से डरो और अपने आपसें प्यार करो ... 

 कवी - सुनील जगदाले

Sunday, August 18, 2019

तुझी आठवण

तुझी आठवण

तुझ्या असण्याने मला फरक पडत नव्हता
तुझ्या नसण्याने मला फरक पडतोय,
तुझ्या वाट्याचे घरकाम मला करावं लागतंय
म्हणून नव्हे तर
तुझ्या नसण्याच्या वियोगाने आज मी रडतोय...

तू खुश असशील माझ्याविना
की माझी किरकिर बंद झाली,
पण तुला कुठे माहित आहे
तुझ्या आठवणीने माझी आसवं बेधुंद झाली..


श्रावण आणि मोबाईल


श्रावण आणि मोबाईल

श्रावणातल्या सरी येऊन मोबाईल माझा भिजेल का?
फेसबुक, व्हाट्सअप बंद होऊन मिडीया मला विसरेल का?

मोबाईल आले हातात सर्वांच्या ग्रंथ कुणी वाचेल का?
जुन्या आपल्या संस्कृतीला उजाळा कुणी देईल का ?

पिझ्झा, बर्गर च्या जमान्यात उपवास कुणी करेल का?
सोळा सोमवार व्रत नाही निदान श्रावणी सोमवार तरी होईल का?

विज्ञान-तंत्रज्ञानाच्या धावत्या युगात क्षणभर कुणी थांबेल का?
श्रावण महिन्यातल्या भक्तीसाठी मोबाईल कुणी बंद ठेवेल का?

- सुनिल जगदाळे

Friday, July 20, 2018

बूँद



मैं बूँद हूँ पानी की, यहाँ मेरी है हुकूमत ॥

एक बूँद से कभी मोती बन जाती हूँ,
लाखों बुंदों से मुसीबत नजर आती हूँ ॥

हर किसी को होती है मेरी जरूरत,
आसान नहीं मेरी इबादत


झरने में दिखी तो सुंदर लगती हूँ,
समुंदर में क्रोधित हो जाती हूँ,

खुशी और गम के साथ,
कभी आँसू बन जाती हूँ ॥


एक साथ जुड़ जाती हूँ,
तो कहर बन जाती हूँ

किसी गरीब किसान की भी,
जान ले लेती हूँ ॥


कहीं ज्यादा कहीं कम,
यही है मेरी हकीकत

मैं बूँद हूँ पानी की, यहाँ मेरी है हुकूमत ॥ ॥

Monday, November 13, 2017

लेकराची हाक

लेकराची हाक

माझ्या लेकराची हाक
माझ्या कानी ऐकू आली
एका हाकेमंदी आई
तुझी वेड़ीपिसी झाली ।

काय लेकराचा थाट
सांगू कुणा-कुणापाशी
मोठा सायब होऊन
आला गावाच्या हो वेशी ।

मन तीळ तीळ तुट
ओठ बोलू लागलं
वाट पाहून लेकरा
माझं डोळ आटलं ।

ज्यानं तुला शिकवाया
शेत गहाण टाकलं
कर्जापोटी तुझ्या बानं
सारं जग हे सोडलं ।
सारं जग हे सोडलं ।।

मंजु (एक माणूस)

मंजु (एक माणूस)

आज त्या कॅन्टीनवाल्या “मंजू”ची आठवण झाली.
कारणही तसेच होते की,
बाजूलाच एक कॅन्टीनबॉय लेडीजशी वाद घालत होता.
मग ते दिवस आठवले.
मंजूच्या विचार आणि आचाराला
सलाम करावासा वाटतो.
त्याने कॅन्टीनबॉयना गुणकारी शिकवण देऊन
शिक्षणातही अग्रगण्य केले आहे.
दिवसा कॅन्टीन- रात्री शिक्षण हे त्यांचे गणित.
मंजु हा एक कॅन्टीनचालक असुनसुद्धा
न्यू इंडिया सेंटरला तो घरचा मेंबर वाटतो.
त्यातच त्याचे स्वादिष्ट पदार्थ,
30*40 मुलांची फौज आणि त्यांची कौतुकास्पद वागणुक.
त्याने केलेल्या संस्काराची परतफेड
ही मुले कशी करणार ? देवास ठाऊक.. .

मंजूच्या कॅन्टीनमधील
सर्व पदार्थांचा आस्वाद घ्यायला
आजही लोक परत परत सेंटरला येतात.
मंजु, तुझ्या या कारकीर्दीला आणि संस्कृतीला
दुरावलेल्या आम्हा सर्वांचा मानाचा सलाम.

तुझ्या हातून पिढ्या घड़तायत
याचा आम्हाला सार्थ अभिमान आहे.
- कवी सुनील जगदाले (एक खादाड)

Thursday, March 16, 2017

गीत

गीत

दूवाँओं से कह दो,
थोड़ी दुवाभी हमें दे दो ॥

दो पल के लिए, थोड़ी खुशी दे दो ॥

इस ज़िंदगानी के लिए, थोड़ी बंदगी दे दो ॥

इन्सानियत के लिए, थोड़ी मगरूरी दे दो ॥

ऐसा न था मैं

ऐसा न था मैं

ऐसा न था मैं, अलग, अकेला रहनेवाला ।। धृ ।।

खुली आंखों से अन्याय देख,चुपकर सहनेवाला ।। 1 ।।

सरेआम गुंडा-गर्दी देख, नजरें झुकानेवाला ।। 2 ।।

लाखों, करोड़ों की भीड़ में, खुदको छुपानेवाला ।। 3 ।।

आपत्तिजनक समय पर, संकट से भागनेवाला ।। 4 ।।

बेदर्दी आवाजें सुनकर, अनसुना करनेवाला ।। 5 ।।

इस दुनिया में शर्मिंदगीसे, झुककर जीनेवाला ।। 6 ॥

ऐसा न था मैं, अलग, अकेला रहनेवाला....

मैं इंसान हूँ

मैं इंसान हूँ

मैं इंसान हूँ
जीता जागता श्मशान हूँ ॥धृ॥

आंखे बंद करके मैं चलता हूँ
किसिकी आवाज मैं न सुनता हूँ ॥1॥

बेबसी, लाचारी मेरी कमजोरी है
सच्चाई से मुँह फेर लेता हूँ ॥2॥

जैसे जिंदगी भीख में मिली है
दुनिया से मैं कहता हूँ ॥3॥

हैवानों मे रहनेवाला
मैं भी एक जानवर हूँ ॥4॥

Tuesday, September 22, 2015

हिन्दी

हम तो यूं ही घबरा गए थे, कवि सम्मेलन के नाम पर
हमें क्या पता था, यूं ही लोग हँसेंगे हम पर।

हिन्दी पखवाड़े का, एक ऐसा मौका आया
और हमने कवियोंका दरवाजा खटखटाया।

एक-दो करके हम, जमा कर रहे थे कवियोंकों
यहाँ तो पूरा कवियोंका मेला हो आया।

सोचा की एक रोज, मैं भी कवि बन जाऊँ
इनसे दो-चार लप्ज सीखके, टी वी में झलक दिखलाऊं।

पर ये होने से पहले, मुझे एक सपना आया
आप कहें तो मैं, पहले वो सपना बताऊँ।

हुआ यूँ कि मेरे सपने में आयी हिन्दी भाषा
वही हिन्दी जो है देश की राष्ट्रभाषा और हमारी आशा।

वो बोली मुझसे, की घबराना नहीं मेरे दोस्त
मै इसलिए आयी हूँ, कि खत्म कर दूँगी भाषा की निराशा।

पढ़ना, लिखना सब हिन्दी में हो जाएगा
और देखना एक दिन, अंग्रेज़ी का नामोनिशान मिट जाएगा।

Tuesday, August 25, 2015

मोबाईल


हमने बचपन में मोबाईल नहीं देखा था

तब हम नजरों से बात करते थे

आप अभी उंगलियों से नचा रहे हो....

तब हम इशारों पर नाचते थे



हमको आपका ये मोबाईल नहीं भाता

क्योंकि ना तो ये खुद चार्ज रहता

और ना ही हमें रहने देता





माना कि तकनीक का जमाना है

लेकिन माँ बाप साथ ना हों

तो ये सब किसलिए कमाना है



मेरी एक दरख्वास्त है भगवान तुझसे

की कोई मोबाइल को भूलेगा चला लेना...

लेकिन माँ बाप को कभी भुलने ना देना......

Tuesday, January 13, 2015

ऐसा क्यूं होता है


1. जब हम कहीं जाने के लिए जल्दी निकलते है तभी गाडियाँ देरी से चलती है।

2. बारिश के मौसम मे जब छाता नहीं होता उसी दिन ज्यादा बारिश आती है।

3. जिस बस का इंतजार हम करते है वही बस जल्दी नहीं आती।

4. घर मे कोई बीमार पड़ता है तभी खाते मे पैसे कम रहते है।

5. गाँव जाना रहता है तभी रिझर्वेशन/ सीट नहीं मिलता है।

6. कोई भी गाड़ी चलाते वक्त जब जल्दी रहती है तभी पुलिस पकड़ता है।

7. किसी को मिलने हम वक्त पर जाते है पर वही देर से आता है।

8. जब टेलीविज़न मे हमे एक चैनल देखना है तभी औरों को दूसरा चैनल देखना रहता है।

9. ऑफिस मे ज्यादा काम होता है तभी घरवालों का फोन आता है।

10. घर मे मेहमान आते है तभी शक्कर/दूध या चाय पावडर कम रहती है।

11. साथमें सामान ज्यादा रहता है तभी टैक्सीवाला नहीं मिलता है।

12. कोई पैसे की मदद माँगता है तभी अपने पास पैसे नहीं रहते है।

13. घर जाने की जल्दी रहती है तभी बॉस बुलाता है।

14. रेल टिकट के लिए लाइनमे अपना नंबर आता है तभी वही खिड़की बंद हो जाती है।

15. पति को आराम करना रहता है तभी पत्नी शॉपिंग का जिक्र करती है।

16. जब पत्नी को शॉपिंग करना है तभी पती साथ जाना नापसंद करता है।

17. मन में अफसोस रहते हुए भी हम उससे माफी नहीं मांगते।

18. बच्चों को मना करने के बाद भी बच्चे वही करते है जो हम नहीं चाहते।

19. बच्चों के साथ बच्चे नहीं बन पाते जब हम बड़ोंके साथ बड़ा जल्दी बनते है।

20. खुशी आती है तो सबको नहीं बताते लेकिन गम सबको बताते फिरते है... क्या करें..???

Monday, January 12, 2015

नववर्षाच्या हार्दिक शुभेछा

नवीन वर्षाच्या सर्वांना हार्दिक शुभेछा

Wednesday, December 10, 2014

जाऊ दे शाळेला


आई मला जाऊ दे शाळेला
दोन चार अक्षर शिकायला ।।धृ।।

शाळेत मी जाईन, फौजदार होईन
गुंड, चोरांना पकडून देईन
सरकार कडून बक्षीसे मिळवायला...

शाळेत मी जाईन, डॉक्टर होईन
पेशंट लोकाना, इंजेक्शन करीन
आजारातून वाचवायला ...

शाळेत मी जाईन, शिक्षक होईन
चुका करणा-याना शिक्षा देईन
आदर्श घड़वायला...

शाळेत जाईन, माणूस होईन
सर्व समाजाला प्रगतिकड़े नेईन
विकास करायला ...

शाळेची आवड


आवड मला शाळेची शाळेत जायचं, शाळा शिकुनी मोठं व्हायचं
शेजारचा हा पिंटया मजला लागलाय बोलवायला
चला चला रे जाऊ या, शाळा शिकायला जाऊ या. ।।धृ।।

शाळेतली पोरं लय लय गुणी, शाळेत म्हणतात पिक्चरची गाणी
एकजुटीने, गोळा होऊन, गोष्टी सांगायला......लागले गोष्टी सांगायला,…
चला चला रे जाऊ या, शाळा शिकायला जाऊ या. ।।१।।

शाळेत पिंटयाचा रोजचा धिंगाना, पिक्चरमुळे हा झाला दिवाना
दादागिरी करून, इतरांना मारून, भाई हा बनायला....लागला भाई हा बनायला....
चला चला रे जाऊ या, शाळा शिकायला जाऊ या. ।।२।।

पिंटयाच्या मनात वेगळच आलं, एकाएकी डोळयात पाणी आलं
अभ्यास करून, नंबर काढून, नाव हयो कमवायला..... लागला नाव हयो कमवायला
चला चला रे जाऊ या, शाळा शिकायला जाऊ या.
चला चला रे जाऊ या, शाळा शिकायला जाऊ या...

Monday, December 1, 2014

“ मैं नहीं हम”


हमने अपने आपको “ हम ” कहाँ
“ मैं “ कहने की हिम्मत नहीं हुई....
क्योंकी हमने सुना है “ मैं “ इंसान को खा जाता है
इंसान जो कुछ भी बनता है
वो “ मैं “ छिन लेता है

इसलिए हम कहना ही ठीक है
“हम” मे तो और भी सहकारी आ जाते है
जो आपको कुछ बनाने के लिए मददगार होते है
हम उनका शुक्रिया अदा तो कर ही देंगे
फिर भी उन्हे इस “ हम “ मे समाने की दावत देंगे

और इसलिए हमें यहाँ तक आने मे जिनकी
सहायता मिली उनके नाम, हमारा ये सम्मान....

धन्यवाद.

Monday, November 3, 2014

तू अशी, तू कशी ?

तू अशी, तू कशी ?
तुझ्या विश्वात तुच रहाशी.

तुझं चालणं, मूंग्याना जागा देणारं
तुझं बोलणं, ओठांना त्रास न होणारं

तुझं राहाणं, नेहमीच साधेपणाचं
तुझं वागणं, विना त्रासाचं

तुझं रागावणं, सर्वांना हसवणारं
तुझं चिडणं, सर्वांना गुंतवणारं

तुझा आनंद तुझ्यात,
तरीही माझ्यात आणि सर्वांच्यात.

ती बोलली


स्वप्नात प्रेयसी माझ्याशी बोलली,
आणि बायको समोर तिने माझी पोल खोलली.

तो असा तो तसा सांगता सांगता,
तिने बायकोशी मैत्री केली.

झाले गेले विसरून जा असे सांगत,
तिने बायकोला भड़कवून दिली.

बायकोचा चेहरा पाहून,
मी केविलवाना झालो.

बादलीभर पाणी पडले अंगावर
तेंव्हा कुठे भानावर आलो.

60 (साठी)


लोकांची मने ओळखून,
जिंकलंत तुम्ही सर्वाना.
विरह सहन होत नाही,
निरोप तुमचा घेताना.

आपण ओळखता, मने सर्वांची
आपण जाणता, मर्यादा मनाची.
तुम्ही आहात ज्ञानाची मूर्ति,
मी काय वर्णावी तुमची किर्ति.

आपले वक्तव्य, मनी छाप पाडते
एकदा गोड बोललात, तीच मैत्री भासते.
आपले स्नेहाचे बोलणे, सर्वांनाच आनंद देते
विनोदी स्वभावांनी, सर्वांचे मन जिंकुन घेते.

उदण्ड आयुष्य लाभों तुम्हा, हीच आमची सदिच्छा,
निवृत्ति नंतरच्या जीवनाला हार्दिक शुभेच्छा.
-सुनिल जगदाळे

Thursday, October 9, 2014

खुर्चीमागे दड्लय काय?


देशाचा विकास, सर्व काही झकास,
नाहीतर भकास, दुसरं काय?

नेत्यांची दिवाळी, नोटांची होळी,
तुमचे आमचे हाल, दुसरं काय?

सत्तेची नशा, मतदाराची दुर्दशा,
डोक्याला ताप, दुसरं काय?

राज्याचे राजकारण, समाजाचे तारण,
खुर्ची बोलणार, दुसरं काय?

खुर्चीसाठी चढ़ाओढ़, नात्यामध्येच घोडदौड़,
टिकास्त्र सोडणार, दुसरं काय?

स्वप्नांची पुर्ती, नावाची किर्ती,
करोड़ोंचे घोटाळे, दुसरं काय?

लोकांची सेवा, निमित्त ठेवा,
सरकारी मेवा, दुसरं काय?

खुर्चीसाठी घुसमट, निवडणुकीने दमछाक,
मतदारांना हाक, दुसरं काय?

Monday, August 4, 2014

लय भारी- माऊली माऊली

गायक: लीला कणसे, बाळ पडसूळे
संगीत दिग्दर्शक: अजय-अतुल

विठ्ठल विठ्ठल -7
तुला साद आली, तुझ्या लेकरांची, अलंकापुरी आज भारावली
वसा वारीचा, घेतला पावलानी, अगा वाळवंटी तुझी सावली
गळा भेट घेण्या, वीणेची निघाली, तुझ्या नामघोषात इंद्रायणी
विठ्ठल विठ्ठल -8

हो... भिड़े आसमंती, ध्वजा वैष्णवांची, उभी पंढरी आज नादावली
तुझे नाव ओठी, तुझे रूप ध्यानी, जीवाला तुझी आस का लागली?
जरी बाप सा-या जगाचा, परी तू आम्हा लेकरांची विठू माऊली
माऊली माऊली- 6 रूप तुझे ---2
विठ्ठल विठ्ठल -8

चालतोरे तुझी, वाट रात्रंदिनी, घेतला पावलानी वसा
टाळ घोष्यातुनी, साद येते तुझी, दावते वैष्णवाना दिशा
दाटला मेघ तू सावळा,
मस्तकी चंदनाचा टिळा
लेवुनी तुळशी माळा गळा या,
दावशी वाट त्या राउळा

हा... आज हरपल देहभान, जीव झाला खुळा बावरा
राहण्या ग तुझ्या लोचनात, भाबड्या लेकरांचा लळा
भिड़े आसमंती ध्वज वैष्णवांची, उभी पंढरी आज नादावली
तुझे नाव ओठी, तुझे रूप ध्यानी, जीवाला तुझी आस का लागली?
जरी बाप सा-या जगाचा, परी तू आम्हा लेकरांची विठू माऊली
माऊली माऊली- 6 रूप तुझे ---2
विठ्ठल विठ्ठल -11

चालला गजर, जाहलों अधिर, लागली नजर कळसाला
पंचप्राण हे तल्लीन, आता घालीन, पांडुरंगाला
देखिला कळस, डोईला तुळस, दावितों चंद्रभागेशी
समीपही दिसे पंढ़री, याच मंदिरी, माऊली माझी
मुख दर्शन व्हावे आता, तू सकल जगाचा त्राता
घे कुशीत या, माऊली तुझ्या, पायरी ठेवतो माथा..
माऊली माऊली- 6

पुंडलीक वरदे हारिविठ्ठल श्री... ज्ञानदेव तुकाराम
पंढरीनाथ महाराज की जय..........

Thursday, July 3, 2014

एक बूँद


एक बूँद शराब की ऐसा मजा चखाती है
बसा-बसाया घर-संसार सब उजाड़ देती हैं

शुरुआत एक ही बूँद से होती है, अंजाम बोतलों तक पहुंचता हैं
और हर पल की खुशी का अंजाम गमों में बदल जाता हैं

नशे में वो इतना डूब जाता है कि शराब के लिए घर ही बेच देता है
बसा-बसाया घर उजड़ जाता है फिर भी वो शराब नहीं छोड़ता है

वक्त


वक्त ठहरता नहीं, बदलता हैं
एक चायवाले का सपना पूरा हो जाता है.

वक्त को वक्त नहीं हैं
वक्त क्या है देखने के लिए.

हमें जानना हैं, वक्त क्या हैं
खुदकों बदलने के लिए

वक्त वक्त की बात हैं
संभल जाना है, खुदको संवारना है.

वक्त आपके लिए नहीं बदलेगा
आपको वक्त के साथ बदलना हैं.

Thursday, May 22, 2014

न जाने क्यूं

जीने की चाहत तो हर किसी को हैं
ऐसेही कोई मरना नहीं चाहता हैं

खुशी से हो उसका दामन भरा
फिर भी वो, हर खुशी जीना चाहता हैं

एक पल हँसता, एक पल में रोता हैं
खुशी को पल में भूल के दु:खो का दिंडोरा पीटता हैं

हर दु:ख मे भगवान पे ही इल्जाम लगा देता हैं
न जाने आखिर क्यूं, हर इंसान एक जैसाही होता हैं



Wednesday, May 21, 2014

मैफिल

यावर्षी पुन्हा एकदा मैफिल जमणार,
उन्हाळयाच्या सुट्टीत फैमिली गावी जाणार.
मग मित्रामध्ये चर्चा सुरू होणार,
पार्टीचे आयोजन कुणाच्या घरी होणार...

दरवर्षी नवीन बकरा शोधतात
अन सुट्टीदिवशी सर्वजण एकत्र येतात
प्रत्येक जण 2 पेग पर्यंत धाव घेतो
अन 4 पेग घेतल्याचा आव आणू लागतो

वर्षभर झोपलेला शेर अचानक जागा होतो
मी किती शहाणा यासाठी स्वत:च भाव खातो
उतरायला लागल्यावर आणखी 2 पेगची मागणी होते
आणि जेवणाची केलेली सोय उगाच फुकट जाते

प्रत्येकजण आवाक्याच्या बाहेर जाऊ लागतो
अन जास्त झाली म्हणून तिथेच लोटपोट होतो
जेवण फुकट जाते म्हणून शुद्धीतले ओरडतात
आणि आयुष्य वाया गेले म्हणून त्यातलेच काही रडतात

ज्याच्या घरी ही मैफिल जमते त्याची चढ़लेली उतरते
बदनामीच्या भीतीने त्याची जणू हौसच फिटते
एक एक करून सर्वाना तो सावरतो
पुन्हा पार्टीत न येण्याची शपथच तो घेतो...

तरी मित्राशिवाय त्यालाही राहवत नाही
पुन्हा एकदा उन्हाळयाच्या सुट्टीची वाट पाही....