मैं बूँद हूँ पानी की, यहाँ मेरी है हुकूमत ॥
एक बूँद से कभी मोती बन जाती हूँ,
लाखों बुंदों से मुसीबत नजर आती हूँ ॥
हर किसी को होती है मेरी जरूरत,
आसान नहीं मेरी इबादत
झरने में दिखी तो सुंदर लगती हूँ,
समुंदर में क्रोधित हो जाती हूँ,
खुशी और गम के साथ,
कभी आँसू बन जाती हूँ ॥
एक साथ जुड़ जाती हूँ,
तो कहर बन जाती हूँ
किसी गरीब किसान की भी,
जान ले लेती हूँ ॥
कहीं ज्यादा कहीं कम,
यही है मेरी हकीकत
मैं बूँद हूँ पानी की, यहाँ मेरी है हुकूमत ॥ ॥
No comments:
Post a Comment